Thursday 20 September 2018

प्रेम भी उतना ही सच्चा है !

प्रेम भी उतना ही सच्चा है !


जब जब मेरा कोई सपना  
टूटता है या फिर मेरा कोई 
सपना बिखरता है मैं उसे  
संभाल कर रखता हु बिलकुल  
अपने दिल के टुकडो की ही 
तरह और उसे उठाकर रखता हूँ 
जैसे कोई नादाँ बच्चा अपना टुटा हुआ 
खिलौना संभाल कर रखता है जब तक 
उसे पता नहीं होता टूटन होती क्या है 
ठीक उसी नादानी के साथ मैं भी उन 
टूटे सपनो को सहेजकर रखता हूँ 
जैसे कांच की कोई बहुत सुन्दर मूरत 
टूटी हो और मैं मन ही मन अपनी 
सहज सरलता से अपने भगवान को 
कहता हु हे भगवान् इसे जोड़ दे प्लीज 
मैं तुम्हारे कल लड्डुओं का भोग लगाऊंगा 
क्योंकि सुना था मैंने भगवान सरलता में बसते है 
और मन ही मन चाहता हु कल वो मूरत मुझे
जुडी हुई मिल जाए ताकि मैं कह सकूँ की 
हां मेरा ये विश्‍वास सच्चा है 
सच्चा था और सच्चा रहेगा 
ठीक वैसे ही सपनो को भी तुम्हारे 
विश्‍वास के भरोसे सहेज रखा है मैंने 
ताकि मैं सबसे कह सकू 
मेरा ये प्रेम भी उतना ही सच्चा है 
जितना सच्चा मेरा भगवान पर विश्वास है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !