मेरी पगलाई सी रूह
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बेहद शर्द कंपकपाने
वाली रात में मेरे घर के
बिलकुल सामने वाला पेड़
जिसके अधिकतर पत्तो के
झड़ जाने के बावजूद भी मेरी
नज़र टिकी है एक उस हरे पत्ते पर
वो हरा पत्ता अभी अभी ऊगा है
उसकी एक डाल पर और वो
बड़ा हो रहा है सहते हुए शर्द
और ज़र्द हवा और उसके साथ
मेरा एक ख्वाब भी पल रहा है
उस खिलते और बड़े होते हरे पत्ते के
के साथ-साथ और एक चाहत भी जगी है
की अब बस उस एक हरे पत्ते के गिरने के
पहले आ जाए हरियाली की बहार और
उस पेड़ पर वैसी ही हरीतिमा छा जाए
जैसी तुम्हारी यादो से बाबस्ता होती है
मेरी हर रात और तुम्हारी मुस्कानो से
सराबोर होती है मेरी पगलाई सी रूह
बेहद शर्द कंपकपाने वाली रात में....
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