Wednesday, 5 September 2018

लफ़्ज़ों के लिहाफ

लफ़्ज़ों के लिहाफ 
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कुछ लफ्ज़ 
ज़िन्दगी के सिर्फ  
खुद से ही पढ़े जाते हैं
वही लफ्ज़ जो दिल की 
गहराइयों में दब जाते है 
कभी कुछ सोचकर कभी   
वो दब जाते है अपनी ही 
भूलवश जैसे कुछ भूली हुई   
सभ्यताएं नजर आती है सिर्फ  
जमीनों के खोदने से ठीक वैसे ही
कुछ लफ्ज़ जो दबे हैं ज़िन्दगी के उन 
पन्नो में जिन्हे वर्जित कर रखा है तुमने 
दुनिया के कानो में पुकारे जाने से ये कहकर
की जब तक वो लफ्ज़ सच का लिहाफ ना ओढ़ ले 
लेकिन तुमने तो पढ़े है ना वो लफ्ज़ फिर क्यों पड़े है 
वो दफ़न अब तक बोलो क्या खता है उन लफ़्ज़ों की बताओ 
कुछ लफ्ज़ ज़िन्दगी के सिर्फ खुद से ही पढ़े जाते हैं आखिर क्यों ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !