याद सिसकती रहती है !
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तंग आकर तुम्हारी
यादो की पिघला देने
वाली मनुहारों से अब
मैंने अपने ज़हन की
कोठरी के दरवाज़े को
मज़बूती से बंद कर दिए
लेकिन कल रात फिर
आयी थी वो तेरी याद
रोती रही और गिड़गिड़ाती
भी रही और उसकी हिचकियों
की आवाज़ें मेरे कानो में पूरी
रात गूंजती रही और अंदर
उस जहन से लगी तुम्हारी
याद पूरी की पूरी रात सिसकती
रही इस तरह अब वो आती है
जिसे कभी उस दरवाज़े की
चाबी दे रखी थी अब वो मुझे
सँभालने अक्सर ही रातो को
इस तरह आती है पर अब
दरवाज़े खुलते नहीं मेरी
चाहत के क्योंकि उसने
तोडा था बड़े ही सलीके से
उस अनुराग से भरे दिल को !
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