Wednesday 19 September 2018

भूख

भूख

अपनी पीपाषा के वशीभूत होकर  
मैं हर दिन ही तुम्हारे बारे में कुछ 
ना कुछ तो अवश्य लिखता हूँ 
लेकिन जब भी तुम्हारा ख्याल 
मेरे दिलो-दिमाग से होकर गुज़रता है 
मानो मेरे अन्दर भावों की स्याही की 
बंद पड़ी बोतल खुद ब खुद छलक पड़ती है 
जिसे अपनी कलम में जैसे ही भरने  
बैठता हु मैं वो शब्द उचक-उचक कर 
कागज़ पर स्वतः उतरने लगते है 
वैसे तो मैं हर किसी चीज से जुडी 
बातें लिखता हूँ तुम्हे लेकिन अपने 
लिखे को उतनी शिद्दत से महसूस 
तब तक नहीं कर पाता जब मेरी देह 
के एक एक रोम छिद्र उत्तेजित हो 
खड़े हो गवाही नहीं दे देती उस शिद्दत का 
गोया मेरी कलम की भूख भी अब तुम्हारे 
लिए लिखे शब्दों से ही मिटती है या यु कहु  
की उस भूख को तृप्ति भी तुम्ही से मिलती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !