Sunday, 23 September 2018

उम्मीद ए जेहन

उम्मीद ए जेहन
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कुछ लम्हे उदास से 
कुछ लम्हे ख़्हुशनुमा से 
जब मिले यादों के कोनो से
तो उन्हें बटोरा दिल ने बड़े 
ही करीने से एक को इस 
कोने से एक को उस कोने से 
और कुछ जो जाकर लिपट से  
गए थे शाम के धुंधले साये से 
और कुछ थे सुबह के सूरज की 
आगोश में धीरे धीरे सुबकते से 
जैसी सांसें उनकी थम सी गयी हो 
फिर दिल ने बड़े करीने से समेटा 
उन्हें जैसे ही अपनी मुठी में और  
टटोला उन्हें तो कुछ की सांसें 
अभी भी जैसे मुस्कुरा रही थी
जैसे एक उम्मीद शायद अब भी 
बाकी थी उनके जेहन में कंही ना 
कंही हां एक उम्मीद उनके जेहन 
में कंही ना कंही अब भी बाकी थी !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !