Wednesday, 12 September 2018

हरतालिका तीज का चाँद


हरतालिका तीज का चाँद
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सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न 
की आवाज होना चाहता हूँ 
ताकि जब ये मौसम का रूप 
आलाप ले रहा हो तब मैं तुम्हारे 
सुरीले कंठ से सुर बनकर अपने 
प्रेम का इज़हार कर सकू;

सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का 
वो सात रंग वाला इन्द्रधनुष 
होना चाहता हूँ ताकी तुम जब  
भी कोई रंग खुद पर डालो तो 
वो रंग तुम्हे मेरे ही इंद्रधनुष 
का एक सबसे खुशनुमा रंग 
लगा नज़र आये ;
  
सुनो मैं आज तुम्हारे हुस्न 
सा हरतालिका तीज का वो 
चाँद होना चाहता हु ताकि 
तुमसे दूर रहकर भी मैं तुम्हारे   
सबसे कठोर व्रत का पात्र बन 
बिधाता के द्वारा लिखे अपने 
उस भाग्य पर इठला सकू;
  
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का 
वो चमकता सितारा होना 
चाहता हूँ जो तुम्हारे असीम 
सौंदर्य में जुड़ कर उसकी 
झिलमिलाहट में चार चाँद लगा दे;

सुनो मै अब तुम्हारे हुस्न 
की वो रक्ताम्भिक लाली 
बनना चाहता हूँ जिसको 
लगाकर तुम्हारे होंठ अग्नि 
की पूज्य ज्वाला समान धधक उठे;

सुनो मैं अब तुम्हारे रूप की 
वो छाया बनना चाहता हूँ 
जिसकी तलाश में तुम दौड़ 
पड़ो तब जब सूरज की तेज़ 
धूप तुम्हे तपाने की खातिर
तुम्हारे सर पर मंडराने लगे 
और तब तुम सिर्फ मेरी तलाश 
में दौड़ कर मेरी ही छांव में आ बैठो;
   
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की वो 
धूप भी बनना चाहता हूँ जिसमे 
तुम अपने भीगे हुए मन को सुखाने 
का सोचो तो बस एक मेरे ही सानिध्य 
को इधर उधर तलाशो;
  
सुनो अंततः मैं तुम्हारे रूप का 
वो एकत्व बनना चाहता हु जिसके  
सामर्थ और शक्ति से मेरा और 
तुम्हारा एकत्व गूँथा जाए ।

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !