Wednesday 19 September 2018

तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन_3



तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन_3
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तुम्हारे साथ जिया वो एक दिन 
जिस एक पुरे दिन तुम साथ थी 
मेरे उस दिन कि छोटी से छोटी 
एक-एक बात याद है मुझे;

नन्हा सा हवा का झोंका रूककर 
तुम्हारे उलझे हुए बालों से खेलने 
लगा था जिस मासूमियत से तुमने  
देखा मुझे था अचानक;

और उस झोंकों को था जोर से झंझोड़ा  
झोंका जैसे ठिठक कर खड़ा हो गया था 
कमरे के एक कोने में जाकर और तुम 
खिलखिलाकर हंस पड़ी थी मुझ पर;

और देखते ही देखते फिर अचानक 
जब दिन घिर आया तो भीनी-भीनी 
रोशनियों ने रात के काजल को मिटाया; 

नींद की लुका-छुपी कुछ यूँ चालू हुई 
की भारी होती पलकों को सपनों ने 
जैसे ही हल्के से खटखटाया तब 

उस नींद से थके चेहरे से भी 
मुस्का कर तुमने आँखें बंद  
बंद करते हुए भी मुझको बड़े
ही प्यार से सो जाने को कहा; 

उस एक पुरे दिन जब तुम साथ थी मेरे  
उस दिन कि छोटी से छोटी या हो वो 
बड़ी से बड़ी पर एक-एक बात आज भी 
उसी तरह मुखस्त है मुझे !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !