Saturday 29 September 2018

देह तत्व भेद क्यों है

प्रथम देह तत्व भेद क्यों 
बोलो आज भी अभेद है
देह भाषित तृप्ति 
जिसमे तरलाई है 
जिसमे घणद्रव्य है 
जिसमे सम्मलित 
उद्वेलित आकांक्षा है 
प्रथम देह तत्व भेद क्यों 
बोलो आज भी अभेद है
देह भेद को खोलने मात्र  
ही जो हर माह प्रकटती है  
वो रक्त की एक अविरल  
चिर परिचित पूजित धारा है
जो स्वयं करती संचित है  
घनद्रव्य को अपनी कोख में
करने सृजन उसी बीज  
के मेल से सृजन जिसका 
प्रथम देह तत्व भेद क्यों 
बोलो आज भी अभेद है
जो आज भी कटु सत्य है
की कारक को तो वो वैसे  
भी सदा से ही प्रिय है 
फिर बोलो कर्ता क्यों आज 
भी  इससे कतराता है 
जबकि बाकी सब कहा 
गुणगान इस कौमार्य 
व यौवन का जैसे आज 
भी होता असत्य प्रतीत है 
दूजा देह तत्व भेद होकर 
भी आज अभेद क्यों नहीं है
वो जो तुम्हारा रक्ताभिक 
श्यामल श्रृंगार युक्त है 
जो सख्त होकर भी उदार है 
जो सदैव प्रवेशातुर रहता है  
बनकर नरम खग स्वरुप है
फिर क्यों प्रथम देह तत्व 
भेद बोलो आज भी अभेद है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !