Wednesday 26 September 2018

उम्मीदों में निहित विश्वास

उम्मीदों में निहित विश्वास 

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उम्मीदों के साथ ही 
जिया जा रहा था मैं 
उम्मीदों में ही निहित था  
मेरा अकूत विश्वास भी 
की इस धरा पर वो सब 
सच होता है जिसे हम 
छू पाते है जिसे हम 
देख पाते है जिसे हम 
सुन पाते है पर ना जाने 
क्यों तुम्हे अच्छी तरह 
छू लेने के बाद तुम्हे  
देख लेने के बाद और  
तुम्हे सुन लेने के बाद 
भी अब तक तुम मेरे 
लिए स्वप्न ही बनी हुई 
क्यों हो हां सच में अब 
तक तुम मेरे लिए स्वप्न
ही तो बनी हुई हो !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !