Saturday, 22 September 2018

सब-कुछ दे दूंगा मैं तुम्हे अपना

सब-कुछ दे दूंगा मैं तुम्हे अपना 
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जब तुम आओगी पास मेरे तो मैं तुम्हे
अपनी भीगी आँखों और तप्त हृदय से   
अपनाकर वो सब-कुछ दे दूंगा जो बचाकर
रखा है अब तक सिर्फ तुम्हारे लिए;

तुम जब सब-कुछ छोड़कर आओगी 
तो अपनी आत्मा को अपने साथ ही  
लाना अपने आने वाले हर एक जन्म 
के लिए और वो भी सिर्फ एक मेरे लिए; 

और मुझे पता है एक दिन तुम जरूर 
आओंगी लेकिन सुनो जब तुम आओ  
तो अपनी ख़ामोशी को साथ ना लाना; 

बस तुम अपनी इन घनेरी जुल्फों को 
खुला रख कर आना और अपनी आँखों 
में थोड़ी नमी भी लेकर आना और आकर 
यंहा जोर जोर से मेरा नाम लेना; 

तब मैं वो सब-कुछ तुम्हे अर्पण कर 
दूँगा जो मैंने एक सिर्फ तुम्हारे लिए 
अब तक बचा कर रखा है; 

मेरी बनायीं प्रेम की कुछ आधी अधूरी 
धुनें कुछ मेरी सिसकती हुई सी आवाज़ें  
और कुछ एक ही जगह ठहरे हुए से कदम; 

जो अब तक तुम्हारे कदमो के इंतज़ार 
में ठिठके हुए थे की कब मिले साथ उन्हें 
तुम्हारे कदमो का और वो चल पड़े अपनी 
मंज़िलों की डगर पर थाम तुम्हारा हाथ;  

और कुछ आंसुओं की बूंदे कुछ उखड़ी हुई 
सी साँसे कुछ अधूरे से शब्द कुछ नम से   
अहसास और थोड़ी सी मेरी खामोशियाँ; 

कुछ तीखे और कुछ मीठे दर्दों के साथ साथ 
कुछ तुम्हारी बेसब्र यादें बस ये सब कुछ 
जो अब तक बचाकर रखा है मैंने 

एक सिर्फ़ तुम्हारे लिये वो सब-कुछ 
दे दूंगा अब तुम्हे ताकि तुम्हे भी तो 
पता चले इतना कुछ सहेज कर रखने 
के लिए जातां कितने करने पड़ते है !  


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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !