ज़िन्दगी का प्रेम
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मन तो नहीं पर
कुछ तो लिखना है
क्योकि मैंने कहा था
उसे जब तक हु तब
तक लिखता रहूँगा
बाहर रात लगभग
अब ठहर चुकी है
हाँ अंदर भले ही
एक झंझावात से
घिरा हुआ हु मैं आज
लेकिन लिख रहा हूँ
कई दिनों से ज़िंदगी
को यु दौड़ते दौड़ते
देखकर अब मेरा मन
यु कर रहा है जैसे
कुछ पलो के लिए
रोक दू इसे और अपने
आस-पास हो रहे इस
दुनियावी शोर से
खुद को कुछ दिनों
के लिए अलग कर लू
इन सब झंझावातों से
चाहता हूँ कि थोड़ी देर के
लिए ही सही लेकिन मैं
अतीतजीवी हो जाऊँ
और चुपचाप उस शांति
को महसूस कर तुलना
करू वो ज्यादा सकूँ
देता है या ये दौड़ धुप
करती ज़िन्दगी का प्रेम !
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