तुम्हारे होंठों के निशाँ
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अक्सर मुझे तुम
अपने घर के अकेलेपन
में महसूस होती हो
मैंने देखे हैं तुम्हारे
होंठों के निशाँ अपने
कॉफी प्याली पर और
कई बार तुम्हारा वो
पिंक गीला तौलिया
बाथरूम में पडा मुझे
मुँह चिढाता है तुम्हारी
तरह जीभ निकाल कर
सुनाई देती हैं मुझे तुम्हारी
आवाज़ जब दिखती हैं
तुम्हारी चप्पलें सारे घर में
मटरगश्ती करती हुई
तुम्हारी महक से पता नहीं
कैसे महकता रहता हूँ
मैं दिन और रात आजकल
यूँ ही मुस्कुराता हूँ मैं बेमतलब,
बेबात बेवज़ह
बताओगी क्यों होता है ऐसा ?
क्या तुम्हारे भी साथ ऐसा होता
है मेरे इंतज़ार में या ये सब
अद्भुद अकल्पनीय अविश्वनीय
सिर्फ मेरे साथ घटित होता है !
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