ज़िन्दगी के सिक्त किनारें
-----------------------------
दौड़ती भागती सी मेरी
ज़िन्दगी में तेरे प्रेम की
लहरों के बीचों बीच सिक्त
किनारों पर कुछ पल जैसे
ठहराव सा पाता हु और तब
लिखता हु तुम्हारे प्रेम को तो
बर्षो से दबी प्रेम की पिपासा
को और पिपासित पाता हु
तब अंदर ही अंदर कोलाहल
मचाते मैं अपने ही भावों को
कुछ लफ्ज सौंप देता हु और
मुझे पता भी नहीं चलता इस
दौरान मैं जिन भावों को अपने
लफ्जों में नहीं बांध पाता वो कब
अश्रु बन तेरी प्यासी धरा को भिगो
जाते है फिर मेरी तन्हाईओं को तेरे
मखमली तन की स्मृतियों में लपेटकर
सुला देता हु और एक पल को मानो जैसे
जन्मो का सकूँ मिल जाता है और जैसे
दौड़ती भागती सी मेरी ज़िन्दगी में तेरे प्रेम की ...
No comments:
Post a Comment