तुम्हारा एक बोसा
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चेहरे पर पड़ती
बारिश की बूँदें
मानों एक बोसा
तुम्हारा संग हवा
के सरसराता छूकर
निकला हो अभी अभी
मेरे गालों को और
उस रेशमी स्पर्श से
बेवक्त ही खुल जाता है
पिटारा उन सुकोमल
तेरी यादों का जिन्हे
समेटते सहेजते अक्सर
ही छिले जाते हैं पोर
मेरी उँगलियों के
बूँदे चाहे बादलों से
टपकी हों या मन के
घावों से रिसी हों
वो अपने पास रखती हैं
चाभी चोरो की तरह
यादों की तिजोरी की
चेहरे पर पड़ती बारिश
की बूँदें मानो एक ...!
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