Thursday, 30 August 2018

सूरज चाँद बन जाता है



सूरज चाँद बन जाता है 
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तेरी इन गोलाकार 
बाँहों में सिमटता 
फैलता सा मैं 
हर साँस तेरी को  
अपनी सांसो में 
समेट लेता हु और 
मैं बून्द-बून्द अपने  
अस्तित्व की तेरी 
रूह में उढेल देता हु  
तो ऐसा लगता है जैसे 
मैं मरते मरते भी थोड़ा 
और जी लेता हु और यु 
भी लगता है जैसे सूरज 
चाँद बन जाता है अपनी 
चकोर से मिलकर लेकिन    
यु कुछ पल का मिलना 
फिर कई रातों और दिनों
के लिए बिछुड़ना जैसे 
सूरज से चाँद बनने का 
अधिकार ही छीन लेना 
फिर निरंतर अपनी ही 
ऊष्मा में कितने दिनों 
तक जलना और मन 
में फिर से मिलने की 
चाह को मरने ना देना 
कैसे करता हु मैं ये सब  
क्या कभी महसूस पायी हो ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !