Friday 22 June 2018

एक नया भरोषा

एक नया भरोषा
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सुनो  ...
ये जो अधखुले  ‘
अधर है तुम्हारे वो
यु नमक के समंदर में से 
चुनते है विरह के मोती और
अकस्मात ही वर्षा के आगमन
के भाँती घेर लेते है मुझे और
मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को
फिर मैं एक बार और विवश
होता हु देने तुम्हे एक और मौका
दिलाने मुझे एक नया भरोषा
क्योकि उस पल मुझे यु लगता है
जैसे इस जगत में आया हु मैं   
एक सिर्फ तुम्हारे लिए !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !