Tuesday, 26 June 2018

तुम्हारी चाहत का समंदर

तुम्हारी चाहत का समंदर
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उसने कहा ये जो 
भूरी-भूरी लहरें है 
तुम्हारी आँखों की 
वो खिंच ले जाती है 
मुझे तुम्हारी रूह के 
रसातल में ;मैंने कहा
मेरे पास कुछ और नहीं 
इस भूरी -भूरी लहरों के सिवा
यंहा तक की कोई अनुभव 
भी नहीं प्रेम का ना ही है 
कोई नाव जिसमे बैठा कर 
तुम्हे पार करा दू इन लहरों से
अगर मैं तुम्हे प्रिय हु 
तो लो थाम मेरा हाथ
मैं तुम्हे इस चाहत के 
समंदर के अंदर पानी के निचे 
साँस लेना सीखा दूंगा  
क्यूँ की सर से पांव तक 
मैं सिर्फ तुम्हारी चाहत 
का समंदर हु !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !