Tuesday, 3 March 2020

पर तुम कहाँ हो !


पर तुम कहाँ हो !

भींगी-भींगी रुत है 
भींगे-भींगे शब्द है 
भींगी-भींगी रात है 
पर तुम कहाँ हो ?
भींगे-भींगे भाव है 
भींगे-भींगे होंठ है 
भींगा-भींगा स्पर्श है  
पर तुम कहाँ हो ?
भींगी-भींगी आहट है 
भींगी-भींगी गुनगुनाहट है  
भींगे-भींगे ज़ज़्बात है 
पर तुम कहाँ हो ?
भींगी-भींगी सी तुम है 
भींगा-भींगा सा मैं है 
भींगा-भींगा सा आलम है 
पर तुम कहाँ हो ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !