Friday 18 May 2018

सोलह श्रृंगार युक्त धरा !



सोलह श्रृंगार युक्त धरा !
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धरा का हृदय व्याकुल
हो उठता है जब वो देखती है
आसमा का खालीपन
और उसी पल धरा की
दोनों आँखें समां लेती है
आसमां के वृहद्‍ अस्तित्व को
जो यु तो दिखने में हर पल
छाया रहता इतनी विस्तृत
धरा पर और वही विस्तृत धरा
जो अपनी आँखों में समाये रखती है
उस वृहद्‍ आसमां के अस्तित्व को
वो स्वयं समां जाती है उसी
आसमां से निकल उसी के कुछ भाग
पर फैले समन्वित सागर में
रहने को सदा हरी भरी ताकि
जब जब उसका आसमां देखे
अपनी धरा को वो उसे दिखे
सदा सोलह श्रृंगार किये हुए
और उसे फिर कभी में ना दिखे
कोई खालीपन अपने वृहद्‍ आसमां में !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !