अक्षत-रोली के छींटे
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मैं अपनी कामनाओं के
अक्षत-रोली के छींटे तुम्हारे
कोरे कागज से हृदय पर
प्रायः हर रोज ही छींटता हूँ
और तुम उसको अपनी हँसी
के लिफाफे में डाल सुबह-सुबह
कचरे के डब्बे में डाल उसे
कचरे बीनने वाली को
दे आती हो देकर उसे ऊपर से
दस रुपैये का एक नोट ताकि
वो कंही आस पास ही ना डाल आये
मेरी उन कामनाओं को जो मुझे फिर
कंही फिर मिल ना जाए उस
उस रास्ते पर आते जाते
ऐसा क्या तुम इसलिए करती हो
क्योकि मैंने तुम्हारी इक्षाओं को ही
बना ली थी अपनी कामनाएं
ये सोच कर की इनको कर पूर्ण
तुम्हे भी उतनी ही ख़ुशी मिलेगी
जितनी ख़ुशी मुझे होगी ?
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