Sunday 6 May 2018

उष्णता की सार्थकता


उष्णता की सार्थकता
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सीली-सीली लकड़ियाँ जब 
मद्धम- मद्धम आँच में सुलगेंगी 
तो चटकने की आवाज़ तो होंगी ही ; 
पर लकड़ियों का उस आंच की  
तपिश से एकीकृत होकर अपना 
स्वरुप खो देना ;उष्णता की सार्थकता 
को प्रमाणित करती है ;
उष्णता का होना जीवंत बनाता है हमें 
साथ ही सार्थकता का अहसास कराता है ;
आँच पर तपकर ही सोना  
स्वरुप बदलकर कुंदन बनता है  
फिर चाहे ज़िन्दगी हो या हो रिश्ते 
या फिर हो एहसास 
उनमे उष्णता का होना और 
उन सभी को उसमे तपना ही 
जीवन की सार्थकता का प्रमाण होता है 
उसी प्रकार तन की लकड़ियां भी 
मद्धम-मद्धम आँच में पकती रहनी चाहिए 
जिससे आंच की सार्थकता का बोध होता रहे !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !