Friday, 25 May 2018

स्वर और शब्द


स्वर और शब्द 
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स्वर आकाश की 
धरोहर है और शब्द
धरा की पूंजी है ;
शब्द सृष्टि की कुंजी है
इसलिए कोई भी चीज़ जो  
हमारे संपर्क में आती है ;
तो हम उसको एक नाम देते है  
क्योकि वही शब्द मौन की ऊँची
से ऊँची दीवार को गिरा देते है ; 
ठीक वैसे ही जैसे रिश्ते अजनबियों 
को भी एक दूसरे से जोड़ देते है ;
स्वर सिर्फ लबो की एक क्रिया नहीं है
जैसे लिखना अंगुलिओं की केवल एक वर्जिश नहीं;
ये वो प्रक्रिया है जो तन्हाई की दीवारों लांघना सिखलाती है   
बस ध्यान ये रखना होता है सदा की शब्द की उम्र उस दिन तय हो जाती है ;
जब उन्हें सियाही ओढ़ लेती है वही दूसरी ओर स्वर अविनाशी रहते है ;
जो हमारा पीछा धरा से कुछ करने के बाद भी करते है  !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !