स्वर और शब्द
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स्वर आकाश की धरोहर है और शब्द
धरा की पूंजी है ;
शब्द सृष्टि की कुंजी है
इसलिए कोई भी चीज़ जो
हमारे संपर्क में आती है ;
तो हम उसको एक नाम देते है
क्योकि वही शब्द मौन की ऊँची
से ऊँची दीवार को गिरा देते है ;
ठीक वैसे ही जैसे रिश्ते अजनबियों
को भी एक दूसरे से जोड़ देते है ;
स्वर सिर्फ लबो की एक क्रिया नहीं है
जैसे लिखना अंगुलिओं की केवल एक वर्जिश नहीं;
ये वो प्रक्रिया है जो तन्हाई की दीवारों लांघना सिखलाती है
बस ध्यान ये रखना होता है सदा की शब्द की उम्र उस दिन तय हो जाती है ;
जब उन्हें सियाही ओढ़ लेती है वही दूसरी ओर स्वर अविनाशी रहते है ;
जो हमारा पीछा धरा से कुछ करने के बाद भी करते है !
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