Saturday 12 May 2018

तुम्हारा यु जाना


तुम्हारा यही होने का भ्रम और
तुम्हारे हिलते डुलते हाथ,
यकीं दिला ही रहे थे की अचानक
मुझे पीठ दिखा कर
जाना ऐसा प्रतीत हुआ
मनो पलक झपकते ही
तुम मेरी नज़रों से ओझल
हुए और मैं अचानक रो पड़ी,
जबरन रोके भी पानी
भला कहाँ रुकता है.
यु तुम्हारे जाने के बाद
ढूंढती रहती हु तुम्हे
और मिलती है मुझे
तुम्हारे अमर प्रेम की बेल की जडें
अपनी जिस्म की मिट्टी में
और तुम्हारी आवाज तब भी
लिपटी हुई होती है ..
मेरे जेहन से पर तुम
नहीं होती पास मेरे
पर तुम्हारे यही होने का भ्रम
अब भी यु ही बना हुआ है  ....

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !