Wednesday, 16 May 2018

जज्बा ही प्रेम का वज़ूद है !


जज्बा ही प्रेम का वज़ूद है !  
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तेरे उस एक जज्बे से है 
मेरा अस्तित्व काबिज यंहा  
जो कभी मुझे खड़ा कर देता है 
ईश्वर के समक्ष तो कभी तुम्हारा 
वो जज्बा लड़कर ले आता है 
मुझे वापस उस यम से 
जिसके जिक्र मात्र से 
प्राणी नतमस्तक हो सौंप 
देता है खुद को उनके हाथ 
मोक्ष की कामना लिए दिल में 
तो कभी तुम्हारा वो ही जज्बा 
जगतनियंता ब्रह्मा विष्णु और महेश
को बनाकर नवजात झूला झूला देता है  
पालने में तो कभी पूरी तरह आकर्षित 
व समर्पित प्रेमी कालिदास को वो तुम्हारा 
जज्बा एक झिड़की में बना देता है महाकवि
या फिर हो विमुख तड़पने देती हो मेरे वज़ूद को 
भूके प्यासे अपनी ही दहलीज़ के बाहर ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !