Friday, 4 May 2018

मेरे जिस्म का हिस्सा



मेरे जिस्म का हिस्सा
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एक-एक लम्हा जो मैंने 
अपना बोया है तुझमे 
जब उगेगी उसकी फसल
तो सोचता हु क्या क्या 
हासिल होगा हम दोनों को 
शायद इतना कुछ 
जितना ना हुआ हो 
हासिल अब तक 
किसी भी दौलतमंद को 
और वो कभी ना ख़त्म 
होने वाली मोहब्बत हर 
रोज़ खर्च करेंगे दोनों मिलकर 
तब भी वो ख़त्म नहीं होगी   
लेकिन थोड़ा थोड़ा हिस्सा 
मेरे जिस्म का जो मैं तुझ पर  
खर्च करूँगा तो तुम मुझे 
थोड़ा सुकून इकठा कर के देना 
जो मेरे जाने के बाद भी 
तुम्हे मेरी याद दिलाता रहेगा 
और मुझे खर्च होकर भी मलाल नहीं होगा ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !