Monday, 30 April 2018

क्या अब भी जिन्दा है तुम्हारी ख्वाहिश

क्या अब भी जिन्दा है तुम्हारी ख्वाहिश
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क्या हुआ तुम्हारी उस ख्वाहिश का
जिसमे तुम देखना चाहती थी मुझे
दूल्हे के लिबास में क्या अब भी जिन्दा है
तुम्हारी वो ख्वाहिश गर हां तो फिर किन्यु
नहीं समझती की ये तन्हाई अब मुझसे नहीं है
कटती अकेले मालूम है मुझे तुम अंगुली कर
दिखाओगी मुझे चाँद भी है तन्हा तारे भी है अकेले
पर मैं क्या करू उनसे कटती है अकेले रात पर
मैंने कहा ना अब मुझ से नहीं कटती
ये रात अकेले मैं हु उदास
तेरी राह तकता हु बस अकेला और तन्हा
हा है साथ ये चाँद और तारे भी फिर भी हु
इस कदर अकेला पर ये तो बताओ तुम की
एक सिर्फ तुम्हारे आने से गर चाँद गवाह बने
और ये तारे बने बाराती और तुम्हारी वो ख्वाहिश
हो पूरी जिसमे तुम देखना चाहती थी मुझे
दूल्हे के लिबास में तो फिर भी किन्यु और किसके 
लिए रुकी हो अब तक वंहा आ जाओ ना अब पास
ताकि तुम्हारी वो ख्वाहिश पूरी हो और मेरी तन्हाई 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !