मेरे हर दर्द को हर लेती है
अक्सर वो मेरे बालो मेंअंगुलिया फिराते फिराते
हर लेती है मेरे हर दर्द को
एक शिशु की तरह सिमट
जाता हु मैं उसी गोलाकार
बाँहों में और छोड़ देता हु
खुद को निढाल सा उसके हवाले
उसकी जकड़न में कुछ देर बाद
ख़त्म हो जाता है द्वेत का भाव
दो होने का भाव गहरी सांसो के बीच
उठती गिरती धड़कने खामोश हो जाती है
और मिलने लगती है आत्माए जैसे
जन्म और जन्मो की प्यासी हो
ऐसी ही पलो में साकार होता है
स्वप्न जीने का तेरे लिए तेरे साथ
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