Thursday, 26 April 2018

मेरे शब्द को अपने कंठ से लगाना


मेरे शब्द को अपने कंठ से लगाना
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जब लगे तुम्हे की दूर बहुत हैं...
राम  ....तो तुम मूंद अपनी 
आँखों को महसूसना उसकी नमी  
को और जो कुछ बुंदे लुढ़क आये
बाहर उसमे मुझे अपने सबसे 
नजदीक पाना यु ही सदा रहूँगा  
साथ तुम्हारे अपने भावों को 
भाषा में ढालते हुए मेरी कलम 
और तुम्हारी सियाही उकेर रही होगी 
सदा हमारा प्रेम तुम सिर्फ इतना करना 
की मेरे शब्द शब्द को अपने कंठ से लगाना 
और जो स्वर निकले तुम्हारे कंठ से 
उसमे सदा ही मुझे अपने सबसे 
नजदीक पाना यु ही सदा रहूँगा 
साथ तुम्हारे 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !