Tuesday 3 April 2018

तुम अक्सर सवाल करती हो..

तुम  अक्सर सवाल करती हो..
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क्यूँ सोचता हूँ मैं तुम्हे ?
जरा पास आओ ,
बताना है आज ,
क्यूँ सोचता हूँ तुम्हे...
तुम्हारी खनक भरी हंसी गूंजती है
हर वक़्त मेरे कानो में ..
इसलिए सोचता हूँ तुम्हे,
तुम्हारा अक्स मेरे दर-ओ-दिवार
पर उभर आता है,
इसलिए सोचता हूँ तुम्हे...
रात के अँधेरे में चाँद की चाँदनी
बनकर जब मेरे ख्यालों की
छत पर पायल पहन कर टहलती हो,
तब मज़बूर हो जाता हु तुम्हे सोचने के लिए ...
घने काले बादल जब घिर आते हैं ,
और उन बादलों से रिसकर बूंदों के
स्वरुप गिरती हो मुझ पर
तो भीगा-भीगा मैं ,
मज़बूर हो जाता हु तुम्हे सोचने के लिए ...
तब सोचता हूँ तुम्हे...
जब सुबह की पहली किरण मेरे सिरहाने तक आती है,
और तुम छू लेती हो गुनगुने अहसास की तरह,
तब सोचता हूँ तुम्हे...
और इतना कुछ घटित होने के बाद
भी खुद को तन्हा पाता हु तो
मज़बूर हो जाता हु तुम्हे सोचने के लिए ...

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !