तितली और रूह
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मैं जब होती हु
तुम्हारे आलिंगन में
तो ये पुरवाई हवा
भी कंहा सिर्फ हवा
रहती है वो तो जैसे
मेरी साँस सी बन
रगो में बहने लगती है
हर एक गुलो में
जैसे तुम्हारा चेहरा
दिखने लगता है
मन उड़ता है
कुछ यूँ ख़ुश हो की
जैसे इच्छाओं ने
पर लगा लिए हो
और रूह तो मानो
स्वक्छंद तितली का
रूप धर उड़ने लगती है
मैं जब होती हु
तम्हारे आलिंगन में ..
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मैं जब होती हु
तुम्हारे आलिंगन में
तो ये पुरवाई हवा
भी कंहा सिर्फ हवा
रहती है वो तो जैसे
मेरी साँस सी बन
रगो में बहने लगती है
हर एक गुलो में
जैसे तुम्हारा चेहरा
दिखने लगता है
मन उड़ता है
कुछ यूँ ख़ुश हो की
जैसे इच्छाओं ने
पर लगा लिए हो
और रूह तो मानो
स्वक्छंद तितली का
रूप धर उड़ने लगती है
मैं जब होती हु
तम्हारे आलिंगन में ..
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