पूरनमासी की रात
--------------------सुनो किन्यु कहती हु
मैं तुम्हे अपना चाँद
जब तुम होते हो साथ मेरे
वो रात जैसे पूरनमासी
की रात होती है उस रात
चांदनी होती है अपने
पुरे शबाब पर ठीक वैसे
ही धड़कने चलती है मेरी
अपनी तीब्रतम गति पर
जब तुम होते हो मेरे साथ
मन तो जैसे हिरण की तरह
कुलाचें मारने लगता है
दिल को जैसे बरसो की
मांगी कोई मुराद मिल गयी हो
मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ
मेरी सांसों में मिलती तुम्हारी सांसें
मुस्कुराहटें भी जैसे अतिक्रमण
करने को आतुर हो हाँठो से फ़ैल
कर गालों तक कब्ज़ा कर लेती है
इसलिए कहती हु मैं तुम्हे अपना चाँद
जब तुम होते हो साथ मेरे
वो रात जैसे पूरनमासी
की रात होती है मेरे लिए
No comments:
Post a Comment