Friday 20 April 2018

चीर प्रतीक्षित चाहत

चीर प्रतीक्षित चाहत

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तुम्हे..नसीब हों
तुम्हारी चीर प्रतीक्षित चाहत
और मिले उसके सभी अंश भी ,
वो भी जो उसने समेटे है
सहेज रखे है अपने हृदयांचल में
और वो भी जो हो रहे हैं इकट्ठा
उसकी गठरी में हर रोज तुम्हारे
चले जाने के बाद भी  ..
उसे भी नसीब हो वो हंसी
जो उगने और पकने के लिए
तुम्हारा इंतज़ार करे जिए ऐसे
जैसे ये धरती करती है आसमा का
फिर दोनों हंसो खिलखिलाओ
ताकि पके उसके बीज की फसल
तुम्हारी कोख में अब

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !