Wednesday, 11 April 2018

पीड़ाएँ सहकर संयम को पोषा है




पीड़ाएँ सहकर संयम को पोषा है
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सुख और सुकून की परिभाषा
तो वही बयां कर सकता है
जिसने दुःख को हृदयतल में
सहेजा हो बर्षो अपनी हथेलिओं
की उरमा से और बेकरारी के
साथ-साथ चल घुटनो पर
सीखा हो खड़े होना अपने ही 
पैरों पर या फिर बरसो अपने
कांधो को सूना रख इंतज़ार किया हो
किसी घने केशु से भरे सर का फिर
एक दिन अचानक वो सर उसके 
उस सुने कांधे पर आ टिके
और दोनों साथ ज़िंदगी बिताने के
खयाल बुनने लगे और हाथों में हाथ डाल
उरमाओं का करने लगे आदान प्रदान
सुख और सुकून की परिभाषा तो वही
बयां करता है सही मायने में जिसने
पीड़ाएँ खुद सह कर संयम को पोषा हो
अपने ही हृदय तल में  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !