Sunday 8 April 2018

उर्वर आँखों की नीरवता




उर्वर आँखों की नीरवता
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जिन्दगी की भागमभाग में
अब तक भाग ही रहे हो तुम
समझ ही नहीं पाए कभी
मेरी उर्वर आँखों की नीरवता
में बसा जो स्नेह है तुम्हारे लिए
मेरे कोमल मन का प्यार है तुम्हारे लिए
मेरे स्पर्श की गर्मी है तुम्हारे लिए
मेरे अहसासों की नरमी है तुम्हारे लिए
कभी महसूस ही ना कर पाए तुम
उन फूलों की खुशबू जो दबे रह गए हैं
कहीं मेरे दिल के वर्क में वो तुम कभी 
जान ही नहीं पाए और उन अनकही
बातों के अद्भुत अर्थ को तुम कभी
जान ही नहीं पाए तभी तो अब तक खुद
को मेरे पास नहीं ला पाए हो तुम 
जिन्दगी की भागमभाग में
अब तक भाग ही रहे हो तुम
इस भागमभाग में क्या क्या खोया है तुमने
ये अब तक जान ही नहीं पाए हो तुम 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !