तुम क्यूँ इतना सोचते हो मुझे
मैं नहीं सोचती तुम्हे इतनाजितना तुम सोचते हो मुझे
क्योंकि मुझे तो तुम हर घडी दिखाई देते हो...
और कभी कभी तो तुम्हे छू भी लेती हूँ,
जैसे हम छू सकते है हवाओं को
ठीक उसी तरह मैं भी छू लेती हु तुम्हे ....
कई बार तो भीग भी जाती हूँ,
दूब पर पड़ी ओस की बूंदों की तरह ..
जब तुम बिलकुल करीब से गुजरते हो
लेकिन तुम क्यूँ इतना सोचते हो मुझे...?
अच्छा बताओ मैं कैसे न सोचूं तुम्हे.....!!!
अधूरी मुलाकात छोड़ जाती हो...
आधी अधूरी बात छोड़ जाती हो...
और रह जाता हूँ सिर्फ मैं अकेला
जो कुछ भी होता है मेरे अंदर
थोड़ा बहुत कुछ तुमसे वो भी
जाते जाते निचोड़ स्वयं में
प्रवाहित कर ले जाती हो तुम
आधे अधूरे सपनों के साथ,
कुछ खामोश से ख्यालों के साथ,
रात भर जागने के लिए,
तुम्हे सोचने के लिए,
सुबह के इंतज़ार में ...
तुम्हारी बातों के प्यार में...
रह जाता हूँ तन्हा ...
तुम्हे सोचने के लिए....
इसलिए इतना सोचता हु तुम्हे
No comments:
Post a Comment