Wednesday 18 April 2018

मेरी हार की वजह




मेरी हार की वजह
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जब भी तुम
मुझे मिलती हो
कहीं खोई-खोई सी
रहती हो
जैसे बूँदें
गिरती हैं
पत्तों पर
और फिसल
जाती हैं ठीक
वैसे ही मेरी
कही हर बात
तुम तक पहुंच कर
लौट आती है
मुझ तक और
मैं जीत के भी हार
जाता हूँ फिर एक बार
दर्द हारने का नहीं
है मुझे दर्द है
"वजह" का
तुम कैसे वजह
बन सकती हो
मेरी हार का

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !