मेरी हार की वजह
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जब भी तुम
मुझे मिलती हो
कहीं खोई-खोई सी
रहती हो
जैसे बूँदें
गिरती हैं
पत्तों पर
और फिसल
जाती हैं ठीक
वैसे ही मेरी
कही हर बात
तुम तक पहुंच कर
लौट आती है
मुझ तक और
मैं जीत के भी हार
जाता हूँ फिर एक बार
दर्द हारने का नहीं
है मुझे दर्द है
"वजह" का
तुम कैसे वजह
बन सकती हो
मेरी हार का
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