टुकुर-टुकुर ताकता कोरा कागज़
----------------------------------
तुम जब नहीं होती
मेरे ख्यालों में तब
मेरी चारो तरफ एक
खालीपन सा होता है
मौत की आँखों में
ऑंखें डाल कर बात
करने का हौसला रखने
वाला "राम" उस वक़्त
कोरे कागज़ से भी नज़र
मिलाने में सकुचाता है
जब कुछ लिखने बैठता है तो
शब्द भी ठहरते नहीं कागज पर
और वो कोरा कागज़ जो
हवा के एक झोंके के आगे
अक्सर घुटने टेक देता है
वो कागज़ का छोटा सा टुकड़ा
टुकुर-टुकुर ताकने लगता है
लगता है जैसे पूछ रहा हो
क्या हुआ कलम के धनी
कहलाने वाले "राम" लिखो
कुछ लिख कर दिखलाओ
मुझ पर तब मानूंगा तुम्हे
कलमकार आज जब वो नहीं है
तुम्हारी सोच में नहीं तो
तुम यही मान लेना
तुम्हारी कलम की सियाही
वो है जो तुमसे अपना
प्रेम लिखवाती है !
No comments:
Post a Comment