एक हमसफ़र---------------
कब तक तुम यु ही
दुनयावी दिखावे के लिए मेरी चाहतों की ग्रीवा
को दबाये रखोगी
कंही ऐसा ना हो की
की भूलवश तुम्हारे
हाथों के दवाब से मेरी
वो चाहते दम तोड़ दे
फिर ना कहना जब तुम्हारा
ये निसकलंक यौवन मेरी
चाहतों की मौत का वज़न
उठाकर चलते हुए ज़िन्दगी
की राह पर भटक कंही
और पराश्रय ले ले
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