Saturday, 29 April 2017

मछलियाँ कितनी खुश थीं....























शीशे के जार में
मछलियाँ कितनी
खुश थीं....
पानी में तैरकर
अचानक
शीशा टूट गया
मछलियाँ फर्श पर
तड़पने लगी
तुम्हारे बिना
मैं कैसे रहता
हूँ प्रिय  ......
प्रतिउतर में
उन तड़पती
मछलियों से
पूछ लेना

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !