Saturday, 29 April 2017

सारी वादी सो रही है






सारी कायनात ..........
एक धुन्ध की चादर
में खो रही है
एक कोहरा सा ओढ़े ........
यह सारी वादी सो रही है
गूँज रहा है झरनो में
कोई मीठा सा तराना
हर साँस महकती हुई
इन की ख़ुश्बू को पी रही है
पिघल रहा है चाँद
आसमान की बाहो में
सितारो की रोशनी में
कोई मासूम सी कली सो रही है
रूह में बस गया है
कुछ सरूर इस समा का
सादगी में डूबी
यहाँ ज़िंदगी तस्वीर हो रही है
है बस यही लम्हे मेरे
पास इस कुदरत के
कुछ पल ही सही मेरी रूह
एक सकुन में खो रही है !!

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !