Saturday, 29 April 2017

तरसती मेरी आँखें









तेरे दीदार में
तरसती मेरी
खुमार से भरी
आँखें रोज रात
एक नया ख्वाब
बुनती है जिनकी
तासीर मेरे लबो
पर चासनी सी
उतरती है फिर
पूरी रात इश्क़
कतरा-कतरा कर
मेरी रूह तक
रिस्ता रहता है

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !