Saturday, 29 April 2017

रात की कालिमा


क्यों रात की ये कालिमा है
क्यों रौशनी से तपता दिन
क्यों आसमा ओझल है
क्यों हवा सूखी मद्धम
क्यों लम्हे बिखरे हैं
क्यों यादों के प्रतिबिम्ब
क्यों आँहे कुछ हलकी सी
क्यों बीत गए वो दिन
क्यों सुबह की ख्वाइश है
क्यों लेटे रहना मुश्किल
क्यों चलते रहना भारी है
क्यों भटके ये पदचिन्ह
क्यों हर इक पल ओझल है
क्यों परछाइयाँ निश्चिल
क्यों तसवीरें चुभती हैं
क्यों सिमटे जीवन प्रतिदिन
एक सिर्फ तेरे बिना

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !