Friday 13 October 2017

प्रेम है जज्बा तेरे दिल का

प्रेम हु मैं
वैसे किताबो और 
कहानीओं में मेरा 
अस्तित्व बहुत बड़ा है ;
पर सच कहु तो कई बार
एहसास होता है जैसे इसके 
अस्तित्व का मोल कुछ 
भी नहीं तेरे एक जज्बे के आगे;
तेरा वो जज्बा जो कभी मुझे 
खड़ा कर देता है ईश्वर के बराबर
व्रत और त्योहारों में तो कभी 
तेरा ही जज्बा मुझे ला खड़ा 
करता है तेरे दरवाज़े के बहार; 
जंहा वो भूखा प्यासा तड़पता है 
तेरा सामीप्य पाने को 
तो प्रेम है जज्बा तेरे दिल का 

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !