Wednesday 25 October 2017

एक मेरी मज़िल हो तुम


एक मेरी 
मज़िल हो तुम
चाहे हासिल हो 
मुझे तेरा सामीप्य 
डूबकर या हो जाए 
रस्ते सारे बंद 
मेरी वापसी के 
पर तुझमे हर 
एक बात है मेरी
ज़िन्दगी को छूती हुई 
और चाहता हु मैं
पहुंचना अब मेरी 
मंज़िल पर चाहे 
धार हो पानी की
उलटी दिशा में 
बहती हुई पर अब 
ना रोक पाएगी 
मुझे तुझ तक 
पहुंचने से 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !