Tuesday, 3 October 2017

तुम्हें चुपचाप...देखता रहता हूँ

अक्सर ही 
खो जाता हूँ ,
मैं अपने स्वयं से 
बाहर निकलकर 
और देखता रहता हूँ 
तुम्हें चुपचाप...
और ऐसा करते करते 
देखो पांच साल  
कब निकल गए 
और तुम्हे अब भी 
देखता हु वैसे ही 
व्यस्त अपनी दुनिया में
तब सोचता हु क्या कभी
ऐसा दिन भी देखने 
को मिलेगा मुझे 
जब तुम इसी तरह 
मुझे ताकोगी  चुपचाप 

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !