Friday 6 October 2017

हस्ताक्षर तुम्हारी संदल देह पर

होती होगी सुबह 
लोगो के लिए 
सूर्योदय की पहली 
किरण से पर मेरे 
लिए तो सुबह होती है 
तब जब ढलता सूरज 
बिखेरता है नारंगी आभा
जिस पर सवार होकर 
तुम आती हो मेरे पास
कुछ लम्हे अपने मेरे 
नाम करने और मैं 
इंतज़ार में हु अब जब 
शाम ढूंढेगी रात को 
पलंग के निचे और मैं
करूँगा अपना हस्ताक्षर 
तुम्हारी संदल देह पर 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !