Tuesday, 10 October 2017

विरह की अग्नि

प्रेम है वो 
जो प्रेमी के लिए 
जलता/जलती है 
विरह में अकेली/अकेला 
जानते हुए की 
वो चाहे तो ये 
विरह अगले पल ही 
मिलन में तब्दील 
हो विरह की अग्नि
को मिलन की
ठंडी फुहार में 
बदल सकती/सकता है 
जब जानते हुए भी
वो चाहता/चाहती 
रहती/रहता है 
उसे यु जैसे 
मरने वाला कोई 
ज़िन्दगी चाहता हो 
वैसे हम तुम्हे 
चाहते है वैसे     

No comments:

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !