Monday 2 October 2017

तुम्हे अपलक ताका करता था

वो दिन भी अच्छी तरह 
याद है मुझे,
जब अक्सर मैं  
तुम्हे अपलक  
ताका करता था ,
जैसे तुम्हारे वजूद की 
चादर हटाकर ढूंढ रहा था   
एक अपना सा दिल ,
मैं लाख मना करू  
पर मुझे था तब इंतज़ार 
जरूर एक तुम्हारा ही 
क्यूंकि वो दिन याद है मुझे 
जब अक्सर मैं  
तुम्हे अपलक  
ताका करता था ,
और एक ये दिन है 
जो अब तुम्हे ता उम्र
याद रहेंगे जब दिन-महीने
निकल जाते है 
तुम्हे देखे मुझे सोचना
ऐसा किन्यु और कैसे हुआ 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !