Wednesday, 10 April 2019

मैं पानी-पानी हो जाती हूँ !

मैं पानी-पानी हो जाती हूँ !

पत्थर पानी हो जाता है,
और पत्थर पानी हो जाता है;

नए-नए चेहरे वाले लोग भी,
कुछ दिन में पुराने हो जाते है;

इश्क़ की लत में गरीब के बच्चे भी,
अचानक राजा और रानी हो जाते है;

सुहानी शाम में लू के थपेड़े भी,
अचानक पवन सुहानी हो जाते है;

मिलान का मौसम जब आता है,
जिस्म भी पानी-पानी हो जाता है;

पेड़ के सूखे पत्ते भी बसंत ऋतू,
के आने की निशानी हो जाते है;

जैसे पत्थर पानी हो जाता है,
और पानी पत्थर हो जाता है;

वैसे ही मैं तो सिर्फ तेरी बातें, 
सुनकर ही पानी-पानी हो जाती हूँ !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !